वट सावित्री पूजा क्या होती है? | About Vat Savitri Pooja
Published on: May 30, 2023
Blog Categories: प्रकृति

वट सावित्री पूजा क्या होती है?


हमारी भारतीय सभ्यता व संस्कृति में पर्व, उत्सव, त्यौहार पुरातनकाल से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते है| पर्व परंपरा हमारी हिन्दू संस्कृति में मिठास घोलते है| हमारे पर्व, उत्सव और त्यौहार जीवन को प्रकृति से जोड़ते है| 

हमारे पूर्वजो ने जो प्रथा और परम्पराएं स्थापित की है वह मानवता के कल्याण के लिए है| यह सनातन हिन्दू धर्म की अमूल्य विरासत है|

पर्व प्रेरणादायी सन्देश भी देते है जैसे बुराई पर अच्छाई की विजय, अन्धकार से उजाले की ओर, प्रकृति के प्रति प्रेम और संरक्षण|

वट सावित्री पर्व भारतीय संस्कृति के गौरवशाली अतीत का प्रतीक पर्व है|

जीवन को प्रकृति से जोड़ने वाला यह पर्व मनुष्य के लिये हितकारी है| मनुष्य का तन-मन और जीवन स्वभाव से ही उत्सवधर्मी है| 

सुहागन महिलाएं वट सावित्री के दिन सौभाग्य प्राप्ति के लिए वटवृक्ष  (बरगद) का पूजन करती है|  

वट सावित्री पर्व ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है| भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक माना जाता है| वटवृक्ष और यमदेव का पूजन सौभाग्यवती महिलाये अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिये करती है| 

बरगद का पेड़ अपनी शाखा और उप शाखाओ के द्वारा घनी छाया व हरियाली देता है| उसी प्रकार सुहागन औरत भी अपने भरे पुरे परिवार के साथ सुख से जीवन जीने की कामना करती है|

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वट सावित्री पर्व भारतीय संस्कृति के गौरवशाली अतीत का प्रतीक पर्व है_Hindudsanskriti

वटवृक्ष – बरगद का वृक्ष

पुराणों के अनुसार इस वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास माना गया है| वटवृक्ष लम्बे समय तक अक्षय रहता है इसे अत्यंत पवित्र अक्षय वट भी कहते है| 

वटवृक्ष के नीचे बैठकर अनेक ऋषि-मुनियो ने तपस्या की थी| यह कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है| वटवृक्ष अपनी विशालता के लिये और दीर्घायु के लिये प्रसिद्ध है| यह ज्ञान और निर्वाण का प्रतीक है| 

भगवान् बुद्ध ने वटवृक्ष के नीचे बैठकर बुद्धत्व को प्राप्त किया था| 

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वट सावित्री महिलाओ के सौभाग्य प्राप्ति का विशेष महत्त्व का दिन है| 

वट सावित्री व्रत जो अमावस्या तिथि को पड़ता है, उत्तर भारत में मनाया जाता है, जबकि भारत के मध्य और दक्षिणी भाग  वट सावित्री व्रत जेष्ठ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है|    

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वट सावित्री महिलाओ के सौभाग्य प्राप्ति का विशेष महत्त्व का दिन है_Hindusanskriti

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री पूजा

देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से जीवनदान माँगा था| अटल पतिभक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान को जीवित कर दिया था और सावित्री को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया| 

वटवृक्ष ऑक्सीजन का भंडार है, वो हवा शुद्ध करके वातावरण को प्रदूषण रहित बनता है|  

वट सावित्री अमावस्या के दिन महिलाएँ सौभाग्य प्राप्ति के लिये वटवृक्ष की पूजा करती है|         

पतिव्रता सावित्री को अपना आदर्श मानकर महिलाएँ देवी सावित्री का पूजन भी इस पवित्र दिन करती है| इस पर्व को इसीलिये वट सावित्री व्रत कहते है| इस दिन महिलाएँ सोलह श्रृंगार करके विधिवत वटवृक्ष की पूजा श्रद्धाभाव से करती है| अखंड सौभाग्य, परिवार का कल्याण एवं सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती है| 

देवी सावित्री का अपने पति के प्रति गहरा प्रेम निष्ठा और मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति को बचाने के लिये साहसपूर्वक दृढ़ता से सामना करना जैसे अद्वितीय गुणों के कारण वह पूजनीय बन गई| 

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वटवृक्ष ऑक्सीजन का भंडार है, वो हवा शुद्ध करके वातावरण को प्रदूषण रहित बनता है_Hindusanskriti

सावित्री के प्रयासों से वटवृक्ष के नीचे सत्यवान का मृत शरीर जीवित हो उठा था इसी कारण ‘वटसावित्री’ का पूजन किया जाता है| 

इस त्यौहार को मनाने के पीछे आध्यात्मिक महत्त्व के साथ-साथ पर्यावरण को भी महत्त्व दिया गया है| वटवृक्ष आयुर्वेद के अनुसार अत्यंत लाभदायी वृक्ष है| बरगद के जड़, तना, पत्ते, फल, फूल पंचांग चिकित्सकीय उपचार में काम आते है| यह वृक्ष वातावरण को शीतलता व शुद्धता प्रदान करता है|

वटवृक्ष केवल एक साधारण वृक्ष ही नहीं वरन दैवीय शक्तियों से युक्त, औषधीय गुणों से भरपूर वृक्ष है| मानव समाज इनका ऋणी है| अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या व पूर्णिमा के दिन स्थानीय परम्पराओं के अनुसार वटसावित्री का पूजन करते है|

प्रकृति पूजन हमारे पूर्वजो ने धर्म से जोड़ा| पवित्र पेड़ो का पूजन करके उन्हें संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है|      

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