अतिथि देवो भव: क्या है | Know All About Atithi Devo Bhavah
Published on: April 22, 2023

सनातन हिन्दू धर्म में अतिथि देवो भव: संस्कृत के तैत्तिरीय उपनिषद से लिया गया है यह एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ होता है अतिथि देवता के समान होता है | हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से भिक्षा मांगने वाले याचक, धर्म प्रचारक, सन्यासी, और साधु संत को बहुत ही सम्मान जनक स्थान दिया गया है | 

अतिथि का अर्थ है जिसके आने की तिथि पता न हो | बिना बुलाये, बिना किसी प्रयोजन के, किसी भी समय, किसी भी स्थान से घर के समक्ष उपस्थित हो जाये उसे अतिथि रूपी देव समझा जाता है | भिक्षा मांगने के अतिरिक्त उन्हें शरण देना भी एक पुण्य कार्य है |

अतिथि सत्कार की परंपरा का महत्त्व महाभारत काल में भी बताया गया है | कहा गया है कि जो व्यक्ति अतिथि का यथाशक्ति आदर सत्कार करता है वह यम यातना से छुटकारा पा जाता है | 

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Athithi Devo Bhav_ Hindu Sanskriti

सूत जी की कथानुसार अतिथि की सेवा सत्कार से बढ़कर कोई अन्य महान कार्य नहीं है | अतिथि की सेवा करना किसी यज्ञ कार्य से कम महत्त्व का नहीं है | 

धार्मिक दृष्टिकोण से घर पर आये अतिथि को द्वार से खाली लौटना पाप माना जाता है | अतिथि के निराश लौटने पर उस घर के पुण्य क्षीण हो जाते है | 

अतिथि का यथोचित्त स्वागत सत्कार करना हमारा एक सामाजिक कर्तव्य भी है | यह गृहस्थ जीवन की सफलता का प्रमुख धर्म है | अतिथि की जाति, सामाजिक स्थिति, को नहीं देखकर उसे भोजन, जल आदि देना चाहिए |

आतिथ्य ही घर वैभव है | अतिथि सत्कार करने पर बहुत से पुण्य प्राप्त होते है |  हमारे ग्रह नक्षत्र भी अनुकूल हो जाते है |

अतिथि धर्म का पालन शिष्टाचार और विनम्रता से करना चाहिए | अतिथि को भी मर्यादा पालन करना चाहिए |

हमारे हिन्दू धर्म में पुराने समय से यह कहा जाता है कि भगवान् किसी भी रूप में आपके द्वार आ सकते है अतः प्रत्येक घर के द्वार पर आये अतिथि का यथोचित्त आदर सत्कार करके उनका सम्मान करना चाहिए |

अतिथि का सत्कार करने पर हमें आशीर्वाद प्राप्त होता है और मन में प्रसन्नता का भाव जाग्रत होता है जो हमारे जीवन के विकास के लिए आवश्यक है |           

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अतिथि देवो भव: का क्या अर्थ है?

अतिथि देवो भव: जिसका अर्थ है अतिथि भगवान है भी भारत में पर्यटकों को भगवान के रूप में मानने और हमारे मेहमानों के प्रति जिम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिए अभियान की टैग लाइन है।

Atithi Devo Bhav_HS

भारत को अतिथि देवो भव: क्यों कहा जाता है?

अतिथि का अर्थ है ‘बिना किसी निश्चित कैलेंडर समय के’ और इसका उपयोग ‘अतिथि’ का वर्णन करने के लिए किया जाता है देवो का अर्थ है ‘भगवान’ और भव: का अर्थ है ‘होना’। अतिथि देवो भव: एक आचार संहिता है जिसने भारतीय आतिथ्य को अतिथि को सबसे ऊपर रखने की अपनी वास्तविक इच्छा के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया है।

अतिथि देवो भव: क्या है?

अतिथि देवो भव:, यह न केवल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक आकर्षक पंक्ति है बल्कि एक पाठ का एक सुंदर उदाहरण है जो हमें अपने मेहमानों को भगवान के रूप में सम्मान रने के लिए कहता है। भारत में मेजबान-अतिथि संबंध वास्तव में सबसे सम्मानित संबंधों में से एक है। 

मेहमानों को अत्यधिक महत्व और तरजीह देने की अनूठी प्रथा स्पष्ट रूप से इस तथ्य की व्याख्या करती है कि हमारे देश के इतिहास में ‘अतिथि सत्कार’ के कई उल्लेखनीय उदाहरण हैं, जिसका अर्थ है अतिथि का गर्मजोशी और सम्मान के साथ स्वागत करना।

भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग, यह कहता है कि प्रत्येक अतिथि को भगवान की तरह माना जाना चाहिए। मेहमानों की जाति, रंग या पंथ के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें सभी प्यार, देखभाल और स्नेह के साथ स्नान किया जाना चाहिए।

 ‘तैत्तिरीय उपनिषद’ नामक प्राचीन हिंदी शास्त्रों में निर्धारित यह अनूठी ‘आचार संहिता’ हमारी संस्कृति के मूल्यों और विरासत को कायम रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि हमारा कोई भी अतिथि कमी महसूस न करे। देश में उच्च स्तर की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के बावजूद, मेहमानों के प्रति भावनाएँ पूरे समय समान रहती हैं।

अतिथि देवो भव:, समय की रेत पर अपना असली सार और भावना खो चुका है। आज व्यापार वैश्वीकरण जिसने भारत को आधुनिक बनाने में मदद की है, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी संस्कृति का क्षरण भी शुरू हो गया है। 

आज जहां सब कुछ तेजी से आगे बढ़ता है, हम अपनी समृद्ध, सदियों पुरानी संस्कृति के लिए कितना समय देते हैं? आज सबसे सरल प्रश्न यह उठता है कि हम में से कितने लोग अतिथि देवो भव: शब्द और इसकी उत्पत्ति के बारे में वास्तव में जानते हैं? क्या हम सचमुच इसी भावना से अपना जीवन व्यतीत करते हैं? अतिथि देवो भव:, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो जल्द ही समय के साथ खो सकता है और एक खोई हुई संस्कृति वाला देश बस एक पहचान के बिना है।

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