मनुष्य विधाता की सर्वोत्कृष्ट रचना है | मानव जीवन का उद्देश्य क्या है, मानव जीवन का लक्ष्य क्या है और इसको प्राप्त करने के साधन क्या है इन सभी प्रश्नो का उत्तर हमारे ऋषि-मुनियो ने पुरुषार्थ चतुष्टय के रूप में दिए है |
भारतीय संस्कृति का भव्य भवन चार स्तंभो पर खड़ा है – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष है |
यह आचारशास्त्र है, कर्तव्यशास्त्र है | जीवन जीने की कला का साधन है, सत्कार्य करने के लिए मार्गदर्शक है , जीवन को अनुशासित करते है | आत्मा के परिष्कार के साथ-साथ जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति को भी संभव बनाते है |
धर्म –
भारतीय संस्कृति में धर्म को प्रथम स्थान दिया गया है | धर्म का अर्थ धारणा से है जो सभी को धारण करता है | धर्म का अभिप्राय श्रेष्ठ गुणों से है जिन्हे धारण किया जाता है |
हमारे सारे जीवन के कार्यकलाप धर्म पर आधारित होना चाहिए | मनुष्य धर्म के आधार पर श्रेष्ठ जीवन जीकर व्यक्ति और समाज दोनों में सुख-शांति ला सकता है |
धर्म सदाचरण, कर्तव्यपालन, मानवीय मूल्यों का प्रतीक है | धर्म में स्वअनुशासन, नैतिकता से जीवन व्यतीत करने के नियम बताए गए है |
धर्म के अभाव से अर्थ, काम में अशांति और पतन होता है | धर्म ही आत्मिक सुख और शांति का मार्ग प्रशक्त करता है |
महाभारत के शांति पर्व में ऋषि पराशर कहते है – धर्म का विधिवत पालन किया जाए तो इस लोक में ही नहीं परलोक में भी कल्याणकारी होता है |
अर्थ –
पुरुषार्थ चतुष्टय में दूसरा स्थान अर्थ को दिया गया है | अर्थ का उपार्जन भी धर्ममय होना चाहिए | अनैतिक रूप से कमाया गया धन अशांति का कारण और दुःखदायी होता है |
धर्म का पालन करते हुए जो धन अर्जित होता है वही सच्चा धन है | धार्मिक शास्त्रों में भी धन की पवित्रता को महत्त्व दिया गया है |
धन दूसरों को पीड़ा या हानि पहुँचाकर धर्म का उल्लंघन करके नहीं प्राप्त करना चाहिए |
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काम –
पुरुषार्थ चतुष्टय में काम को तीसरा स्थान दिया गया है | काम का उपभोग भी धर्ममय होना चाहिए |
धर्म के अभाव में अर्थ और काम अवनति, अशांति और पतन के कारण बन जाते है |
काम सृष्टि का मूल है, मनुष्य की स्वाभाविक एवं जन्मजात प्रवृत्ति है | संतानोत्पति, मानव जाति की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए जरुरी है |
धर्मयुक्त काम संयम का मार्ग है, जो स्वास्थ्य ठीक रखता है, मन को निर्मल तथा चित्त को शांत करता है | धर्मयुक्त काम ही मोक्ष का द्वार है |
मोक्ष –
मोक्ष पुरुषार्थ चतुष्टय में चौथे स्थान पर आता है | जीवन यात्रा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है | न्यायशास्त्र के अनुसार दुःख से छूटने का नाम ही मोक्ष है | मोक्ष प्राप्ति मानव जीवन की परम उपलब्धि है |
मनुष्य को गृहस्थ जीवन जीते हुए सात्विक, संयमित, सदाचारी रहना चाहिए | अर्थ एवं काम का धर्मयुक्त आचरण करके अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना चाहिए |