हिन्दू संस्कृति में दान का महत्त्व | Importance of Charity in Hindu Culture
Published on: May 17, 2023
दान_HIndusanskriti

हमारे हिन्दू संस्कृति में दान की महिमा का गुणगान प्राचीन समय से होता आ रहा है | दान का अर्थ है देने की क्रिया| निस्वार्थ भाव से दिया गया दान सर्वोत्तम माना गया है| हमारे सनातन धर्म में विशेष तिथियों, त्योहारों, धार्मिक आयोजनों पर भक्ति भाव से दान देने की परंपरा रही है|

प्राचीन काल में ऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों का दान देवताओ को विश्व कल्याण के लिए दिया था | दानवीर कर्ण ने भी अपनी उदारता और धर्म का पालन करते हुए मरते समय तक दान दिया| कर्ण ने अपने अमूल्य रक्षा कवच और कुण्डल देवता के राजा इंद्रा को दान में दिए थे|  हमारी भारतीय संस्कृति में ये दान के अद्वितीय उदाहरण है|

 हमारे प्राचीन ऋग्वेद में भी ऋषि मुनियो ने ज्ञान दान की महिमा का वर्णन किया है|

भगवद गीता में भी परोपकार की भावना से किया गया दान को सवश्रेष्ठ माना गया है|

शुकदेव जी ने भी बताया है दान सुपात्र को करना चाहिए| दान में अहंकार की भावना नहीं होनी चाहिए|

Importance of Charity_Hindusanskriti

दान में क्या देना चाहिए? 

कलियुग में दान का विशेष महत्त्व है क्योकि दान करने पर मनुष्य को अनेक सुखो की प्राप्ति होती है| दान पांच प्रकार के प्रमुख है- विद्या दान, भूमि दान, कन्या दान, गौदान, और अन्न दान | विद्या दान को महादान माना गया है क्योकि यह ऐसा दान है जिसे कोई चुरा नहीं सकता| दान करने के लिए धन ईमानदारी से कमाया हो, नैतिक तरीको से अर्जित धन ही दान योग होता है|

दान देने के अनेक नियम शास्त्रों में बताये गये है| दान यथा शक्ति, शुद्ध मन, और प्रसन्न भाव से देना चाहिए|

दान देने की क्रिया निस्वार्थ भाव से होनी चाहिए|

यह व्यापार नहीं एक सत्कार्य है| दान जरुरतमंद तथा सुपात्र को देना चाहिए| दान श्रद्धा पूर्वक, परोपकार की भावना रखकर देना चाहिए|

दान दिखाकर, और जताकर ( प्रदर्शन ) करके नहीं करना चाहिए | ऐसा कहा गया है बांये हाथ ( Left Hand ) से दिया गया दान दाया हाथ ( Right Hand ) को पता नहीं चलना चाहिए | 

निर्धन व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार प्राचीन काल से दान करते आ रहे है| देना तो हमें प्रकृति रोज सिखाती है, सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियाँ अपना जल, धरती से हमें जीवनदायी अनाज प्राप्त होता है।

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दान को सवश्रेष्ठ माना गया है_Hindusanskriti

“तुलसी पंछी के पिए, घटे न सरिता नीर।दान दिए धन न घटे,जो सहाय रघुबीर” |

तुलसीदास जी ने कहा है कि जिस प्रकार पंछी के पानी पीने पर नदी का जल कम नहीं होता उसी प्रकार दान करने से धन घटता नहीं है| 

दान धन का ही हो, यह आवश्यक नहीं है | वेदो केअनुसार भूखे को रोटी, प्यासे को पानी पिलाना, बीमार का उपचार, किसी व्यथित व्यक्ति को अपना समय, उचित परामर्श, आवश्यकतानुसार वस्त्र, सहयोग, विद्या यह सभी जब हम सामने वाले की आवश्यकता को समझते हुए देते हैं और बदले में कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करते, यह सब दान कहलाता है। 

दान करने के लाभ –   

निस्वार्थ भावना से किया गया दान देने वाले को ही नहीं वरन लेने वाले को भी संतुष्ट तथा प्रसन्न करता है| दान करने से मनुष्य को मोह से मुक्ति मिलती है| अद्भुत आत्मसुख की प्राप्ति होती है| 

दान पूरी तरह आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो मनुष्य को सकारात्मक ऊर्जा देती है| मानव के जीवन पर ग्रह नक्षत्रो का गहरा प्रभाव पड़ता है | ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से भी ग्रह दोषो का निवारण करने के लिए दान देना एक श्रेष्ठ उपाय बताया है|

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 दान में क्या देना चाहिए _hindusanskriti

हमारी वैदिक संस्कृति में दान का महत्त्व- हमारे शास्त्रों में दान के रूप में वर्णित दान वैदिक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। हमारा प्राचीन ग्रंथ आनंदमय जीवन जीने में दान के महत्व और आवश्यकताओं के बारे में बताता है। 

भक्तिपूर्वक धन अर्पित करना दान कहलाता है। दान इस दुनिया में भोग और दूसरी दुनिया में मोक्ष प्रदान करता है। लेकिन दान के लिए धन ईमानदारी से और नैतिक तरीकों से अर्जित किया जाता है, गरुड़ पुराण कहता है। नहीं तो दान का कोई परिणाम नहीं होता है।

हिंदुओं का मानना ​​है कि दान महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दूसरों की मदद करना ब्रह्म की मदद करना है, क्योंकि सभी जीवित चीजों में एक आत्मा या ब्रह्म का अंश होता है। निस्वार्थ परोपकारी कार्यों को कर्म योग के उदाहरण के रूप में देखा जाता है।

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