हवन और यज्ञ की भारतीय संस्कृति में महत्ता
हमारी भारतीय हिन्दू संस्कृति में अनेक धार्मिक अनुष्ठानो, संस्कारो में हवन और यज्ञ को बहुत ही पवित्र कार्य माना गया है| हवन एक वैदिक अनुष्ठान है जिसे होम भी कहा जाता है | प्रतिदिन हवन करने को दैनिक अग्निहोत्र भी कहा जाता है| यजुर्वेद एवं अन्य धार्मिक ग्रंथो में भी हवन यज्ञ की महत्ता बताई गई है|
हवन के द्वारा दिव्य शक्तियों का आवाहन करके उनकी विशेष कृपा प्राप्त की जाती है| प्राचीन काल से ही हवन को हिन्दू धर्म ग्रंथो में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है| हवन के द्वारा देवताओ को प्रसन्न किया जा सकता है| प्राचीन काल से ही हिन्दू घरो में और मंदिरो में धार्मिक अनुष्ठान करने पर हवन अनिवार्य रूप से किया जाता है|
हवन अग्नि को प्रज्वलित करके समिधा जैसे आम पीपल, गूलर, तुलसी आदि की लकड़ी, काले तिल, गौ घृत, गोबर के कंडे आदि पवित्र हवन सामग्री द्वारा किया जाता है | हवन करते समय विद्वान पण्डितो द्वारा शुभ मंत्रोच्चार किया जाता है| मंत्रोच्चार कर सभी देवी-देवताओ का आवाहन किया जाता है| हवन में अग्नि देव को आहुति स्वाहा द्वारा डाली जाती है|
पितृ देवता को भी हवन के द्वारा प्रसन्न किया जाता है | नवरात्री में देवी शक्ति की आराधना भी यज्ञ, हवन, पूजन द्वारा की जाती है |
प्राचीन समय से ही घर की पवित्रता तथा वातावरण की शुद्धि बनाये रखने के लिए हवन किया जाता है| मनुष्य अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिए हवन करता है| ज्योतिष शास्त्र में भी जन्म पत्रिका (जन्म कुंडली) के दोषो को दूर करने और ग्रहो को अनुकूल करने के लिए हवन, पूजन करवाने का विधान है|
हिन्दू धर्म में हवन के बिना अनेक धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं किये जा सकते| प्राचीन समय से हवन के माध्यम से ऋषि मुनि और तपस्वी ईश साधना करते थे| हवन करने का केवल धार्मिक महत्त्व ही नहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अनेको लाभ है|
भारतीय प्राचीन ज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान भी हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र के संबंध में एकमत है|
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विश्व के अनेक देशो में भी जैसे दक्षिण अमेरिका, आयरलैंड, स्कॉटलैंड आदि में भी महामारी जैसे भयंकर रोगो को दूर करने के लिए हवन, यज्ञ करने की प्रथा रही है|
हवन के द्वारा जो धुआँ उठता है वह वातावरण को पवित्र और सकारात्मक बना देता है| हवन के द्वारा वातावरण में वायु शुद्धि होती है तथा ऑक्सीजन का लेवल भी बढ़ जाता है| हवन में प्रयोग की गई सामग्री जड़ी-बूटियाँ, गौघृत जलने पर वायु में प्रदूषण घटाती है| जहरीले कीटाणुओं को दूर करने में हवन सहायक है जिससे अनेक बीमारियां दूर हो जाती है|
आयुर्वेद के अनुसार हवन करने से मन तथा शरीर को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है| हवन करने पर जो धुंआ उठता है उससे संक्रामक रोग जैसे सर्दी, खांसी तथा ज्वर आदि को ठीक किया जा सकता है| सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए हवन का बहुत अधिक महत्त्व है|
हवन करते समय पंडितो द्वारा मंत्रोच्चार किया जाता है उससे वातावरण में सकारात्मक ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है | यह तन और मन को शांत रखने में सहायक है|
उपरोक्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों को देखते हुए मनुष्य अपने आत्म कल्याण और विश्व कल्याण की कामना के लिए हवन, यज्ञ आदि पुराने समय से करता आ रहा है|
हमारी वैदिक संस्कृति में यज्ञ और हवन दोनों का बहुत महत्त्व है इनके बिना कोई भी शुभ अशुभ कर्म पूर्ण नहीं होता|
प्रश्न उठता है कि क्या यज्ञ और हवन एक ही है हमारी हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में हवन और यज्ञ दोनों का महत्त्व दर्शाया है|
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हवन और यज्ञ क्या है?
हवन- हवनकुंड में अग्नि के माध्यम से देवताओं को हवि (भोजन) पहुंचाने कि प्रक्रिया है | यह शुद्धिकरण का एक कर्मकांड माना जाता है | हवन छोटे रूप में किया जाता है, नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के लिए हवन किया जाता है| पूजा कार्य के बाद अग्नि को आहुति देना हवन कहलाता है |
यज्ञ- यज्ञ में देवताओं का आव्हान वेद मंत्रों के द्वारा किया जाता है और दक्षिणा भी दी जाती है|
यह किसी मनोकामना की पूर्ति और अनिष्ट को टालने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है| यज्ञ कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है|
वेदो में यज्ञ के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिलती है| यज्ञ की रचना ब्रह्मदेव ने की थी | वेदो में अग्नि को ईश्वर का मुख माना गया है| यज्ञ का दूसरा नाम अग्निपूजा भी है| वैदिककाल से ही यज्ञ के द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जा रहा है|
हमारी भारतीय संस्कृति में यज्ञ को मानव जीवन के लिए मोक्ष का कारक माना है| यज्ञ से ही बहुत से सत्पुरुष देवता बने है| यज्ञ मात्र अग्नि में आहुति देने वाला कर्मकांड नहीं इसके पीछे सशक्त जीवनदर्शन छिपा हुआ है|
सबकी उन्नति के लिए यज्ञ में जो आहुतियाँ हवन जाती है जिससे संसार का उत्थान होता है और मानव का आत्मकल्याण होता है| विशाल यज्ञों के जो आयोजन होते है उसमे विद्वान् पंडितो द्वारा प्रभावी मंत्रों का उच्चारण होता है समिधाये (यज्ञ सामग्री) हवन की जाती है तो वातावरण में उसका दिव्य प्रभाव होता है|
यज्ञ के अद्भुत सकारात्मक प्रभाव पड़ते है
अग्नि- ऋग्वेद में यज्ञाग्नि को पुरोहित की संज्ञा दी गई है| अग्नि में जो बहुमूल्य पदार्थ हवन किये जाते है वे जल कर जनकल्याण के उपयोग के लिए वायुमंडल में फैल जाते है|
जो वस्तु अग्नि के संपर्क में आती है वह उसे अपने जैसा बना लेती है अग्नि की लौ विषम परिस्थितियों में भी दबती नहीं बल्कि ऊपर को उठी रहती है| मनुष्य को भी अग्नि शिखा की तरह कठिनाइयों में अपने मनोबल ऊंचा उठाये रखना चाहिए|
अग्नि का गुण उष्णता और प्रकाश देना है उसी प्रकार मनुष्य को भी सक्रिय और कर्तव्यनिष्ठ जीवन जीना चाहिए| यज्ञाग्नि से प्राप्त भस्म मानव तन के अंत का प्रतीक है अपने जीवन को श्रेष्ठतम बनाने का प्रयास करना चाहिए|
यज्ञ एक आध्यत्मिक प्रयोग है उचित विधि से किया गया यज्ञ, हवन सशक्त ऊर्जा पैदा करने का माध्यम है यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग बनाते हुए परिवार, समाज और पूरे संसार का कल्याण कर सकते है|
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