पोंगल क्या है?
पोंगल का त्यौहार दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला विशेष पर्व है | पोंगल का अर्थ होता है परिपूर्ण | पोंगल के समय नई फैसले तैयार हो जाती है, किसान धन, धान्य से परिपूर्ण हो जाते है | इसी ख़ुशी में पोंगल का त्यौहार बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है |
पोंगल हिंदू का एकमात्र त्यौहार है जो सौर कैलेंडर का पालन करता है और हर साल जनवरी के चौदहवें दिन मनाया जाता है। पोंगल का खगोलीय महत्व है यह उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है, सूर्य की छह महीने की अवधि के लिए उत्तर की ओर गति।
दक्षिण भारत में पोंगल का पुनीत पर्व विशेष रूप से तमिलनाडु राज्य में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है | यह पूर्णतः प्रकृति को समर्पित त्यौहार है | पोंगल का त्यौहार फसल की कटाई बाद मनाया जाता है | यह बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है | पोंगल त्यौहार में सूर्य देवता की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है |
हिंदू धर्म में उत्तरायण को शुभ माना जाता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति का तात्पर्य सूर्य के मकर या मकर राशि में प्रवेश करने की घटना से है।
पोंगल का त्यौहार भी सूर्य के उत्तरायण होने पर ही मनाया जाता है |
पोंगल का अर्थ उबालना होता है | सूर्य देवता को चढ़ाये जाने वाला पोंगल गुड़ और चावल से मिट्टी में बना होता है | नए धान से चावल निकालकर पोंगल का भोग सर्वप्रथम सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है |
पोंगल कब और कैसे मनाया जाता है?
पोंगल जनवरी के महीने में तमिलनाडु में मनाया जाने वाला 4 दिवसीय लंबा फसल उत्सव है। यह वह समय है जब राज्य में चावल, गन्ना, हल्दी आदि फसलों की कटाई की जाती है।
इस तरह का त्यौहार फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है और उत्तर की ओर सूर्य की छह महीने की यात्रा की शुरुआत का संकेत देता है और अच्छे और स्वादिष्ट भोजन के साथ मनाया जाता है।
पोंगल का त्यौहार 4 दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन का अपना महत्व, रीति-रिवाज और अनुष्ठान होते हैं। हिंदू मंदिरों में घंटियाँ, ढोल, शहनाई और शंख पोंगल के आनंदमय त्यौहार की शुरुआत करते हैं।
पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, लोग अपने घरों में सभी बेकार वस्तुओं को हटाकर साफ़-सफाई करते है | यह देवताओं के राजा इंद्र को समर्पित है | चावल के आटे से शुभ आकृतियाँ बनाई जाती है जिसे कोलम कहते है |
दूसरे दिन को सूर्य पोंगल या थाई पोंगल के रूप में मनाया जाता है। चावल को दाल के साथ सुबह सबसे पहले मिट्टी के बर्तन में उबालने का रिवाज है जिसमें हल्दी का पौधा बंधा होता है। एक बार तैयार होने वाला पोंगल पहले देवताओं को, फिर मवेशियों को चढ़ाया जाता है, और फिर सभी के बीच वितरित किया जाता है।
तीसरा दिन मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह दिन मवेशियों की पूजा के लिए समर्पित है। खेती कार्य में पशु धन गाय, बैल का बहुत महत्त्व है |
चौथे दिन को कानुम और कन्या पोंगल कहा जाता है और यह उत्सव के अंत का प्रतीक है। इस दिन घर को सजाकर बेटी दामाद को बुलाकर स्वागत, सत्कार किया जाता है | भाइयो की लम्बी आयु के लिए बहने घर सजाकर प्रार्थना करती है | पोंगल ( खीर ) बनाना और उसे बांटना सात्विक स्नेह का प्रतीक है |
पोंगल का महत्व
पोंगल मूल रूप से एक फसल कटाई का त्यौहार है या इसे धन्यवाद त्यौहार के रूप में माना जा सकता है क्योंकि यह त्यौहार सूर्य देव और भगवान इंद्र को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है ताकि किसानों को बेहतर फसल प्राप्त करने में मदद मिल सके।
हिन्दू संस्कृति में पोंगल को उत्तरायण पुण्यकाल के रूप में जाना जाता है, जिसका हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।