सात्विक भोजन एक वरदान – Satvik food: A Blessing
Published on: May 6, 2023
भोजन किस प्रकार करना चाहिए_Hindusanskriti

हमारी भारतीय संस्कृति में भोजन (आहार) की शुद्धता पर अधिक महत्त्व दिया गया है| मानव जीवन और शरीर पर भोजन (आहार) का व्यापक प्रभाव पड़ता है | भोजन पर ही मानव शरीर निर्भर है| मनुष्य के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर भोजन के अनुरूप गहरा असर पड़ता है|

ठीक ही कहा गया है “जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन”|

भोजन करना एक पवित्र कार्य है यह जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है| भोजन तीन प्रकार के होते है सात्विक, राजसिक, तामसिक| सात्विक भोजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है भोजन करने से मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है| 

महर्षि सुश्रुत के अनुसार भोजन, शरीर को पुष्ट करने वाला बलकारक, तेज, उत्साह, स्मृति और अग्नि को बढ़ाने वाला होता है| 

भोजन स्वास्थ्य के लिए की ग्रहण करना चाहिए_HIndusanskriti

आयुर्वेद के अनुसार चरक ऋषि ने मित भुक, हित भुक, ऋत भुक तरीके से भोजन करने का महत्त्व बताया गया है| भूख से कम, सात्विक, न्यायोपार्जित, भोजन बनाने वाले की भावना, उचित प्रकार से प्राप्त सामग्री ही हमारी चेतना को परिष्कृत करता है|

शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए शरीर की गतिविधियां सुचारु रूप से चलाने के लिए संतुलित व पवित्र आहार की आवश्यकता होती है | 

शरीर की कोशिकाओं का निर्माण भोजन द्वारा ही संभव होता है| भोजन उत्तम प्रकार का पवित्र भाव से बना होना चाहिए |

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भोजन करना एक पवित्र कार्य है_Hindusanskriti

भोजन किस प्रकार करना चाहिए –

  • अपने हाथों द्वारा भोजन ग्रहण करना चाहिए|
  • शांति और मौन रहकर भोजन करना चाहिए|  
  • भोजन स्वास्थ्य के लिए की ग्रहण करना चाहिए स्वाद के लिए नहीं|
  • पाचन शक्ति के अनुसार निश्चित समय पर उचित मात्रा में भोजन करने पर शीघ्र पच जाता है| 
  •  स्वाद के वशीभूत ही नहीं सादा सुपाच्य परिमित मात्रा में किया गया भोजन ही उचित आहार है| 

भोजन ही उचित आहार है_Hindusanskriti

  • भोजन अग्निहोत्र के समान दो बार दोपहर बारह बजे व सांय काल सात बजे तक कर लेना चाहिए|
  • खड़े-खड़े भोजन करने से मानव शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पढता है|
  • भोजन को अपने आराध्य को भोग लगाकर शांत मन से स्मरण करके स्थिरचित होकर प्रसाद के रूप में करना चाहिए क्योकि भोजन करना एक पवित्र कार्य माना गया है|
  • हमारी संस्कृति में अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मनुष्य शरीर ही माध्यम है अतः भोजन को अच्छी तरह चबाकर और एक घंटे बाद ही जल ग्रहण करना चाहिए|
  • हमारे ऋषि मुनियो ने आहार ग्रहण करने के कई नियम बताये है वो वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभदाई है जैसे भूमि पर आसान बिछाकर पालथी (सुखासन मुद्रा) में बैठना चाहिए|
    भोजन करने के उचित नियमों का पालन करके ही हम अपने शरीर को स्वस्थ व तेजस्वी बना सकते है|     

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