गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
गुरु की महिमा
“ गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”
अर्थात-
गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; ऐसे गुरु का मैं नमन करता हूँ |
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को प्रतिवर्ष मनाई जाती है | महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म इसी पावन दिवस पर हुआ था तभी से इसे गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है |
गुरु की महिमा अनंत और अपार है | गुरु ज्ञान प्राप्ति और जीवन को ऊर्जामय बनाने के लिए सच्चा मार्गदर्शन प्रदान करते है | जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम् । मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥
अर्थ : ध्यान का आधार गुरू की मूरत है, पूजा का आधार गुरू के श्रीचरण हैं, गुरूदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन मंत्र के आधार हैं तथा गुरू की कृपा ही मोक्ष का द्वार है ।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
गुरु ही शिष्य के लिए सर्वस्व है संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए श्रेष्ठ मार्गदर्शक है |
हमारी भारतीय संस्कृति में पुरातन समय से गुरुओं को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है | ज्ञान की प्राप्ति तथा ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग केवल गुरु ही बताता है |
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
हमारे देश में पुरातनकाल से आश्रमों और गुरुकुल की परंपरा चली आ रही है | गुरु शिष्य का संबंध ज्ञानजन्य और संस्कारजन्य होता है | गुरु अपने शिष्य के जीवन के विकास में अमूल्य योगदान देता है वह शिष्य के भूत, भविष्य और वर्तमान तीनो कालखंडो को समग्र दृष्टि से देखता है |
गुरु अपना शिष्य बनाते समय श्रेष्ठ मंत्रो का चयन करके शिष्य के संस्कारों के अनुरूप मन्त्र दीक्षा देते है | गुरु पद को सक्षम और सिद्ध बनाने के लिए गुरु को बहुत परिश्रम करना होता है | गुरु का दायित्व बहुत ही बड़ा होता है |
गुरु गु और रु संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ अंधकार को दूर करना और ज्ञान के प्रकाश को फैलाना है |
मनुष्य की प्रथम गुरु माता है वही जीवन देती है और सांसारिक मूल्यों से परिचित कराती है | उसके पश्चात् विद्याध्ययन, सच्चे ज्ञान की प्राप्ति और ईशप्राप्ति गुरु ही प्रदान करते है |
गुरु पूर्णिमा पर्व पर विद्वान् गुरुजनों की पूजा, अर्चना की जाती है उनके गुणों की महिमा गायी जाती है | गुरुजनों का सम्मान करके श्रीफल, दक्षिणा आदि दी जाती है | यह परंपरा आज भी गुरुकुलों, आश्रमों में प्रचलित है |
प्रश्न यह उठता है कि गुरु और शिक्षक में क्या भेद है?
शिक्षक –
शिक्षक केवल शिक्षा प्रदान करता है वह विद्यार्थी को जानकारी प्रदान करता है | सामान्य जानकारी विद्यार्थी के सामान्य और व्यावहारिक जीवन के लिए लाभकारी होती है | शिक्षक का ज्ञान केवल बाहरी जगत तक सीमित रहता है |
गुरु –
गुरु विद्या प्रदान करता है, जीवन जीने की समझ, अनुभव और बोध शिष्य को कराता है | मार्गदर्शन और संरक्षण गुरु ही करता है |
गुरु ऊर्जा का महाकेन्द्र है जो अपने शिष्य के संस्कारों का परिमार्जन करता है, ज्ञान और विज्ञान की समझ अपने शिष्य को देता है | गुरु पद की महिमा वर्तमान समय में बनाये रखना बहुत ही जरुरी है इस महान पद का गौरव आने वाली पीढ़ी को समझना अति आवश्यक है |