शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों करते है ? The Significance of Pradakshina around Shiva Linga
Published on: January 2, 2023

जानिए शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों करते है?

प्रदक्षिणा (परिक्रमा) का अर्थ –

भारतीय हिन्दू संस्कृति में प्रदक्षिणा का अभिप्राय की भी मंदिर में स्थापित मूर्ति या पवित्र स्थान की परिक्रमा से होता है | शिवलिंग को सामान्यतः गोलाकार मूर्तितल पर खड़ा दिखाया जाता है | 

प्रदक्षिणा एक हिन्दू और बौद्ध धर्म में, दक्षिणावर्त दिशा में एक छवि, मंदिर, अवशेष या कोई अन्य पवित्र वस्तु की परिक्रमा करने का संस्कार प्रदक्षिणा होती है | प्रदक्षिणा दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमे प्र अर्थात आगे की ओर व दक्षिणा अर्थात दक्षिण दिशा में। दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ने को ही प्रदक्षिणा कहा जाता है। 

जब हम किसी मंदिर में जाते है तो हम मूर्ति के चारो और परिक्रमा लगाते है | हम हर मूर्ति और देवी की एक ही तरह से पूजा नहीं करते उसी तरह शैव भक्त शिव लिंगम के समक्ष आधी परिक्रमा करते है | 

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Shiva Ling Parikrama_ Hindu Sanskriti

शिवलिंग की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) क्या होती है? 

शिवलिंग का पूजन करते समय शिवलिंग की अर्ध प्रदक्षिणा करते है | शिव पुराण समेत कई शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसका धार्मिक कारण यह है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। 

शिवलिंग अपनी आकार की दृष्टि से भिन्न है शिवलिंग की परिक्रमा करने का सही तरीका है शिवलिंग की बांयी ओर से दांयी ओर घूमना है |

अलग-अलग देवी देवताओ की विभिन्न तरीके से परिक्रमा की जाती है जैसे- आत्म प्रदक्षिणा, गिरी वलम, आदि प्रदक्षिणा, अंग प्रदक्षिणा, मुट्टी पोडुडल, आदि | 

परिक्रमा पवित्र अग्नि, तुलसी का पौधा, पीपल के पेड़, वट-वृक्ष और पवित्र गाय आदि के चारो ओर की जाती है | 

शिव को अर्पित की जाने वाली प्रदक्षिणा को आधी होनी चाहिए | प्रदक्षिणा के दौरान जल के जलाधारी ( outlet ) को पार नहीं करते है क्योकि यह शिव लिंगम के हिस्सा है इसलिए प्रदक्षिणा को आधी होनी चाहिए इसे समसूत्री प्रदक्षिणा कहते है | 

शिव मंदिर में प्रदक्षिणा (परिक्रमा) कैसे की जाती है ?

शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बायीं ओर से आरंभ करके जलधारी तक जाकर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरी ओर से फिर से परिक्रमा पूर्ण करें। इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग की परिक्रमा कभी भी दायीं ओर से नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की परिक्रमा करते समय जलस्थान या जलधारी को लांघना वर्जित होता है। 

कई लोग ऐसे भी हैं जो शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा करते हैं, लेकिन शिव पुराण के अनुसार आधी परिक्रमा ही करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि शिव स्वयं अनादि और अनंत हैं। उसके पास अपार ऊर्जा है और बाहर बहने वाली ऊर्जा या शक्ति को निर्मिली के माध्यम से दर्शाया गया है।

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शिवलिंग की प्रदक्षिणा क्या होती है_ Hindu Sanskriti

शिवलिंग की आधी प्रदक्षिणा (परिक्रमा) का महत्त्व 

हमारी शिवपुराण और शास्त्रों के अनुसार – 

  1. शिवलिंग के चारो और केवल अर्ध परिक्रमा की जानी चाहिए |

2. यह प्रथा इसलिए उचित है क्योकि शिव आदि और अनंत है | यहाँ आदि का अर्थ है आरम्भ या प्रथम और अनंत का चिरस्थायी | 

3. उनसे बहने वाली अन्तहीन ऊर्जा को  निर्मिला के रूप में दर्शाया गया है जो संकरा निकास है जहा से दूध और पानी बहता है |

निर्मिली को पार करने के बहुत बड़ा दोष माना गया है|

4. निर्मिली शिवलिंग का एक पवित्र हिस्सा है और इसे कभी भी पार नहीं करना चाहिए। इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि निर्मिली पर पैर रखने से बचने के लिए शिवलिंग की केवल आधी परिक्रमा ही करें।

5. गौरी-शंकर स्वरुप की प्रदक्षिणा करते समय भगवान शिव की आधी तथा माता गौरी की एक पूरी प्रदक्षिणा करनी चाहिए |

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