पूजा क्या है?
हमारी हिन्दू संस्कृति में पूजा का अर्थ भगवान ( ईष्ट देव ) का श्रद्धा पूर्वक पूर्ण विश्वास के साथ पूजन करना है | पूजा भगवान को प्रसन्न करने हेतु की जाती है | यह दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है | पूजा हिन्दू समाज में प्रायः हर घर में की जाती है |
पूजा घरों और मंदिरों दोनों में की जाती है। हिन्दू मंदिरो में पूजा पुजारियो द्वारा विधि-विधान के साथ की जाती है |
पूजा को नित्यकर्म में शामिल किया गया है | पूजा ईष्ट देव के समक्ष की जाती है | पूजा करने में कंकू, अक्षत, हल्दी, कपूर, सिंदूर, रोली, मौली, दीपक जलाकर, धूप और अगरबत्ती आदि पूजन सामग्री का उपयोग किया जाता है | धूप, दीप से उनकी आरती की जाती है | भगवान को फल, मेवे, मिष्ठान, आदि का भोग लगाते है जो भक्तगण प्रशाद रूप में पाकर आनंदित होते है | पूजा द्वारा देवी-देवताओं की स्तुति की जाती है |
हिन्दू धर्म में पूजा शारीरिक शुद्धि स्नान के बाद की जाती है पूजा एक अनुष्ठान है इसका अर्थ है श्रद्धा, आराधना, श्रद्धांजलि, सम्मान | पूजा सभी धार्मिक उत्सवों में की जाती है | हिन्दू धर्म के सभी संस्कार बिना पूजा के संपन्न नहीं होते जैसे शिशु का नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार, विवाह संस्कार आदि |
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पूजा के प्रकार
अभिगमन – देवालय अथवा मंदिर की सफाई करना, निर्माल्य ( पूर्व में भगवान को अर्पित की गई वस्तुओं को हटाना ) | ये कर्म अभिगमन के अंतर्गत आते है |
उपादान – गंध, पुष्प, तुलसी दल, दीपक, वस्त्र-आभूषण आदि पूजा सामग्री का संग्रह करना उपादान के अंतर्गत आता है |
योग – इष्टदेव की आत्मरूप से भावना करना योग कहलाता है |
स्वाध्याय – मंत्रार्थ का अनुशासन करते हुए जप करना, सूक्त-स्तोत्र आदि का पाठ करना, तथा गुण-नाम आदि का कीर्तन करना | यह सब स्वाध्याय में आता है |
इज्या – उपचारों के द्वारा अपने आराध्य देव की पूजा करना इज्या के अंतर्गत आती है |
पूजा करने के लिए क्या जरुरी है?
पूजा करने के लिए एक भक्त को अपने ईष्ट देव मूर्ति, तस्वीर, या पवित्र वस्तु शिवलिंगम, शालिग्राम या यन्त्र को स्थापित करना महत्वपूर्ण है | मंदिर को देवालय भी कहा जाता है | भक्तो का विश्वास भगवान की मूर्ति में अगाध होता है |
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पूजा कहाँ आयोजित की जाती है?
हिंदू आमतौर पर तीन अलग-अलग वातावरणों में पूजा करते हैं: मंदिरों में, घरों में और बाहरी सार्वजनिक स्थानों पर भी। इन तीनों प्रकार के पूजा स्थलों में किसी भी देवता की पूजा करने की विधि प्रायः समान है।
मंदिर में पूजा क्यों होती है?
मंदिर ( देवालय ) एक पवित्र स्थान है जहाँ हिन्दू भक्तगण बड़ी श्रद्धा और विश्वास से पूजा में सम्मिलित होते है | यह एक आस्था का केंद्र है |
भारत में प्राचीन काल से बहुत सुन्दर, कलात्मक मंदिरों का निर्माण किया गया है जो हमारी प्राचीन धरोहर है | हिन्दू भारतीय संस्कृति को मंदिरों में बहुत अच्छी तरह से दर्शाया है | देवी देवता की पूजा-अर्चना करना बहुत पुरानी परंपरा है |
देवदर्शन के लिए भक्त गण को स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर, नंगे पैर जाना चाहिए | प्रत्येक मंदिर में स्थापित मूर्ति के अनुसार अलग-अलग नियमो का पालन किया जाता है | सभी को श्रद्धा पूर्वक उनका पालन करना चाहिए |
पूजा क्यों की जाती है?
पूजा करने से मन में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है | घर में देवी-देवताओं का करने से वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है | मानसिक शांति मिलती है | मंदिर (देवालय) में दर्शन करने से मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना जाग्रत होती है | धार्मिक पूजा उत्सवों में मंदिर जाने से सामाजिक मेल-जोल बढ़ता है | घर में पूजन होने से घर के सदस्यों में प्रेम एवं पारिवारिक सामंजस्य बढ़ता है |
पूजा के क्या फायदे हैं?
ऐसा कहा जाता है कि जब पूजा शांत मन से धैर्य के साथ की जाए तो भगवान भक्त की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। सुबह-सुबह भगवान का ध्यान करने से मानसिक तनाव दूर होता है, मंत्र जाप करने से बुद्धि तेज होती है।
भगवान की भक्ति पूजा करने के फायदे भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। पूजा के द्वारा भगवान को प्रसन्न करने से भक्त को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है | आध्यात्मिक शक्तिया प्राप्त होने से मनुष्य में देवत्व गुण जाग्रत होते है | भगवान की आराधना करने से भक्तों को किसी प्रकार का रोग तथा शोक दूर होते है।
पूजा करने से घर का वातावरण शुद्ध और सकारात्मक रहता है। पूजा-पाठ से जहां व्यक्ति को आत्मीय सुख और शांति प्राप्ति होती है वहीं इससे भगवान का आशीर्वाद भी मिलता है। पूजा करने पर भगवान की कृपा से मनुष्य को अनेक शक्तियाँ प्राप्त होती है जो उनको जीवन जीने में सहायक होती है | शास्त्रों में पूजा पाठ करने के कई तरह के नियम बताए गए हैं, जिसका अनुसरण करने पर जीवन सफल और शांति पूर्वक बीतता है।
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