हम भगवान को भोग क्यों लगाते हैं?
हमारी भारतीय हिन्दू संस्कृति में भगवान् के साकार रूप की पूजा-अर्चना मूर्ति के रूप में की जाती है| हमारे हिन्दू धर्म में भगवान् को भोग लगाने की परंपरा काफी पुरानी है| भगवान् सर्व शक्तिमान है वह हमारे भावनात्मक रूप से प्रेम भाव के भूखे होते है|
भोजन एक पवित्र कार्य है| शुद्ध, पवित्र होकर सात्विक भाव से प्रेमपूर्वक भोजन सामग्री बनानी चाहिए| ईश्वर से जो भी प्राप्त होता है उसे श्रद्धा पूर्वक समर्पित करना भोग कहलाता है| भगवान् को भोग लगाए जाने वाली सामग्री प्रसाद बन जाती है| भोग को नैवेद्य भी कहा जाता है| नैवेद्य पूजा के भाग के रूप में देवता को चढ़ाया जाने वाला भोजन है|
अथर्ववेद में भी कहा गया है – कि भोजन को हमेशा भगवान को अर्पित करना चाहिए, उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करें| श्रीमदभगवदगीता में भी भगवान् कहते है जो भक्त प्रेम पूर्वक भोग लगाते है उसे मै सगुण रूप में प्रकट होकर ग्रहण करता हूँ |
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भगवान् को चढ़ाये जाने वाला भोग सात्विक होना चाहिए|
“प्र का अर्थ है प्रभु, सा का अर्थ है साक्षात्, द का अर्थ है दर्शन अर्थात प्रसाद का अर्थ है प्रभु के साक्षात् दर्शन”
तामसिक पदार्थो का प्रयोग भोग में वर्जित होता है| जीवन में जो भी हमें प्रभु से प्राप्त हुआ है उसे श्रद्धापूर्वक समर्पित करना आस्तिकता का भाव समझाता है|
हिन्दू धर्म में भक्तों की ऐसी आस्था है कि भगवान् विशेष रूप से पूजा, अर्चना, प्रार्थना स्वीकार करने के लिए श्रीविग्रह के रूप में मंदिर में मूर्ति के स्वरुप में विराजते है| भगवान् को भोग लगाना एक प्रकार का भक्त और भगवान् का प्रेम व्यवहार है जो उनके संबंधों को प्रगाढ़ करते है|
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भगवान् को भोग लगाए बिना कोई भी पूजा अनुष्ठान अधूरा होता है| भगवान् को भोग लगाने पर भोजन सामग्री दिव्य अमृत के समान हो जाती है|
हमारे हिन्दू धर्म में मान्यता है कि प्रतिदिन जो भोजन बनाते है उसे भगवान् को भोग लगाकर प्रसाद के करना चाहिए जिससे भगवान् की विशेष कृपा प्राप्त होती है| प्रसाद को भगवान् का आशीर्वाद भी माना जाता है|
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हमारी हिन्दू संस्कृति में विशेष पर्वो और धार्मिक आयोजनों में भगवान् को विशेष व्यंजनों, मिष्ठान आदि का भोग लगाकर प्रसन्न किया जाता है| सभी देवी-देवताओ को अलग-अलग तरह का भोग लगाया जाता है जैसे गणपति जी को मोदक, लड्डू, नवरात्रि में देवी शक्तियो को हलवा, खीर का भोग लगाया जाता है|
भगवान् को अर्पित किया गया भोग जो प्रसाद रूप में होता है उसे ग्रहण करने पर हमें बहुत से लाभ मिलते है|
- हमारे मन में सकारात्मक विचारो का प्रवेश होता है|
- मन को शांति मिलती है|
- प्रसाद ग्रहण करने पर आत्मा को तृप्ति मिलती है|
भगवान् को भोग लगाना भगवान् के प्रति अपना प्रेम, कृतज्ञता को दर्शाना यह एक मानवीय सद्गुण है|
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